अपनी बात
साहित्य में गज़़ल का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उर्दू साहित्य से चल कर आई यह विधा हिंदी व लोकभाषा के साहित्यकारों को भी लुभा रही है। गज़़ल केवल भाव की कलात्मक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि यह जीवन के सभी पक्षों को स्पर्श करती चलती है। सामाजिक सरोकारों के अतिरिक्त युगीन चेतना विकसित करने का भी यह एक सशक्त माध्यम है। निश्चय ही परंपरावादी विद्वानों ने गज़़ल के संबंध में कहा है कि गज़़ल औरतों से या औरतों के बारे में बातचीत करना है,परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अब यह कहना उचित नहीं होगा। जैसे-जैसे समय बीतता गया गज़़ल लेखन का परिदृश्य बदलता गया। इसके विषय- क्षेत्र ने विस्तार पाया और अब जिन्दगी का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जो गज़़ल की विषय वस्तु न हो। आज समसामयिक विषयों को भी गज़़ल के माध्यम से बेहतरीन ढंग से कहा जा रहा है। विजय वाते जी अपनी गज़़ल में कहते हैं –
‘हिंदी,उर्दू में कहो या किसी भाषा में कहो,
बात का दिल पे असर हो तो गज़़ल होती है।’
वास्तव में गज़़ल की यही सार्थक और सही परिभाषा है।
मैं कोई गज़़लकार नहीं हूँ। बल्कि मेरा विषय तो बाल साहित्य रहा है। मैंने तो अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने के लिए इस साहित्यक प्रवृति का सहारा लिया है। फेसबुक पर पोस्ट की गई गज़़लों को मित्रों के द्वारा निरंतर सराहना मिलती रही और मैं लिखता रहा। इस तरह अनायास ही एक संग्रह तैयार हो गया।
छत्तीसगढ़ी भाषा का हिंदी भाषा से निकट का संबंध होने के कारण इसे समझने में गैर छत्तीसगढिय़ों व साहित्यक मित्रों को कठिनाई नहीं होती। छत्तीसगढ़ी को अद्र्धमगधी भी कहा गया है । अवधी में रचित रामचरित मानस पढ़ते समय हमें लगता है कि यह तो अपनी ही भाषा की शब्दावली है। छत्तीसगढ़ी भाषा में तत्सम शब्दों की भी अधिकता है,जिसके कारण पाठकों को समझने में असुविधा नहीं होती और छत्तीसगढ़ी भाषा का माधुर्य उन्हें अपनी ओर आकर्षित करता है।
इस संग्रह में मैंने जिन गज़़लों को संगृहीत किया है उनका विषय ‘आज’ है। इसमें मैंने सामाजिक विद्रूपता और समाज में घटित हो रही बातों को सहजता से किसी पूर्वाग्रह के बिना कहने का प्रयास किया है। अर्थात् ‘आज’ जो भी घटित हो रहा है उन घटनाओं से आम व्यक्ति किस तरह प्रभावित हो रहा है और वह किस तरह की प्रतिक्रिया देता है। यही मेरा वण्र्य विषय है। यह विषय जीवन के तमाम सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों से सरोकार रखता है।
यदि मैं कहता हूँ कि-
‘अवइया बरस बड़का चुनाव हे,
भाई-भाई मा गजब मनमुटाव हे।’
तो यह मेरे जीवन का अनुभव है । जो समाज में हो रहा है उसका मैं प्रत्यक्षदर्शी हूँ। रचनाकार समाज में घटित हो रही घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी और विश्लेषक होता है। जिसे वह देखता है, महसूस करता है और वैसे ही कह देता है। बिना किसी लाग लपेट। जैसे कबीर की वाणी । कबीर मेरे भी आदर्श हैं, कबीर के साहित्य में जो समाज का यथार्थ स्वरूप दिखाई देता है वह अन्यत्र कहीं नहीं। उनका यही गुण मुझे भी भाता है और शायद यही मुझे सच-सच कहने के लिए प्रेरित भी करता है।
‘मनखे मन मनखे के दुश्मन
कइसे पाये पार रे भाई।
अँधवा पीसय कुकुर खावय,
जग होगे अँधियार रे भाई।
इस संग्रह में एक सौ आठ गज़़लें हैं। एक सौ आठ इसलिए क्योंकि यह भाभी श्रीमती माधुरी कर का आदेश है। आदरणीय डॉ. चितरंजन कर से इस गज़़ल संग्रह को प्रकाशित कराने के विषय में चर्चा हो रही थी। चर्चा के समय भाभी जी भी थीं। उन्होंने कहा कि इसमें एक सौ आठ गज़़लें हों, और हमने उनकी इस वाणी को शिरोधार्य कर लिया। इन गज़़लों में मैने छत्तीसगढ़ी माटी की महक को बनाए रखने की ऐसी कोशिश की है कि छत्तीसगढ़ की सहजता और सरलता गज़़लों की भाषा बने और पाठक इसे अनुभूत कर सकें। ।
इस क्षेत्र के प्रख्यात भाषाविद और साहित्यकार डॉ. चितरंजन कर, छत्तीसगढ़ी गज़़ल को एक नई पहचान दिलाने वाले अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार श्री मुकुंद कौशल, चिंतक, अदभुत पाठक और साहित्यकार श्री महेन्द्र वर्मा का मैं आभार मानता हूँ जिनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन से यह गज़़ल संग्रह अपने मूर्त रूप में आ सका। श्री द्रोण साहू, श्री विनय शरण सिंह के प्रति भी स्नेहसिक्त कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने हमेशा मुझे अपेक्षित सहयोग प्रदान किया।
सहज भाव रखने वाली मेरी धर्मपत्नी श्रीमती धारणी साहू का भी आभारी हूँ जो मुझे कार्य करने के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराती हैं। प्रकाशक श्री सत्यप्रकाश सिंह, चित्रकार भाई राजेन्द्र ठाकुर एवं टंकणकर्ता कोमल प्रसाद यादव का भी आभारी हूँ जिन्होंने मेरे संक्षिप्त आग्रह पर सहयोग प्रदान किया है।
अंत में मैं उन्हें कैसे भूलूँ, जो आज नहीं होते हुए भी सदैव मेरे आसपास होते हैं, मेरे पूज्य पिता स्वर्गीय श्री गोविन्द साहू , जिन्होंने मुझे शिक्षा और संस्कार देकर गढ़ा। मेरे उद्भव और विकास का पर्याय बने।
माँ, मातृभूमि और मातृभाषा वंदनीय हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रति मेरा सहज अनुराग है कि यह कृति पाठकों को सौंप पा रहा हूँ। अंचल के साहित्यकारों एवं पाठकों का भी आशीर्वाद इन गज़़लों को मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। साहित्यिक मित्रों सहित सभी से मेरी अपेक्षा रहेगी कि वे अपने अमूल्य सुझाव प्रेषित कर अगले संस्करणों के लिए सहयोग प्रदान करेंगे।
बलदाऊ राम साहू
सचिव
छ.ग. राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग,
रायपुर (छ.ग.)
मो.न.- 9407650458,
7089107079